साइबर क्राइम काफी तेजी से पूरे विश्व में फ़ैल चुका है। हांलांकि यह कहना बिलकुल गलत होगा कि हमारे समाज के सारे लोग इसके बारे में जानते हैं। पर यह कहना अनुचित भी नहीं होगा कि कभी ना कभी, या तो खुद के साथ, या किसी रिश्तेदार के साथ, या किसी जान पहचान के व्यक्ति के साथ हुई साइबर क्राइम से संबन्धित कोई घटना हम सभी के जानने में जरूर आई है। इन्हीं घटनाओं की वजह से हमें साइबर ठगों की कार्यप्रणाली की भी थोड़ी बहुत जानकारी होती है। परंतु साइबर क्राइम करने के इतने सारे तरीके हैं कि यह उम्मीद करना कि कोई भी मामूली व्यक्ति इसके बारे में समुचित जानकारी रखे और खुद का वृस्तित तरीके से बचाव करे, यह मूर्खता होगी।
विश्व के सर्वोच्च नेताओं और व्यवसायियों के सोशल मीडिया खाते हैक हो जाना तथा बड़े बड़े बैंकों का हैक हो जाना यह दर्शाता है कि यह कोई मामूली बात नहीं है। और फिर ऐसे दिग्गज लोगों एवं संगठनों के खाते तो साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की देख रेख में होते हैं। सारी क्षमता लगाने के बाद भी जब अपराधी सुरक्षा के उपायों में सेंध लगा सकते हैं, तो यह समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि कितनी भी व्यापक सुरक्षा क्यों ना हो, सुरक्षा के उपाय कितने कारगर होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। आपकी निजता, निजी जानकारी, व्यवसाय संबन्धित जानकारी, और निजी वित्त संबंधी जानकारी, खतरे में है। ऐसे में जब आप उपरोक्त को बचाने के सारे उपायों को नहीं जान सकते, और ना ही बरती हुई सतर्कताओं के प्रभाव की गारंटी ले सकते हैं, तो यह जानना काफी जरूरी हो जाता है कि आपके साथ किसी भी साइबर फ़्रौड होने की स्थिति में आपको क्या करना चाहिए?
सर्वप्रथम, जैसे ही आपको जानकारी हो कि आपके साथ साइबर फ़्रौड की घटना हुई है, आप अपने बैंक को सूचित करें। हर बैंक के अपने निःशुल्क ग्राहक सेवा नंबर हैं जो बैंक की वेबसाइट पे दिये हुये होते हैं। आप इस नंबर पे घटना की जानकारी दर्ज कराएं। आप बैंक के कार्यालय में भी जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। रिजर्व बैंक के मुताबिक, अगर घटना में आपकी कोई भी भूमिका नहीं है, तो आपकी कोई भी ज़िम्मेदारी नहीं बनती है और इस परिस्थिति में सारा मुआवजा बैंक को देना होगा। किसी भी हाल में यह सूचना तीन दिन के अंदर दे दें, वरना सात दिनों के अंदर जानकारी देने पर बैंक आपको 10,000 रुपये प्रति अनाधृकृत लेन देन से ज्यादा का मुआवजा नहीं दे सकेगा। सात दिन से ज्यादा की देरी की स्थिति में आप खुद अपने नुकसान लिए ज़िम्मेवार होंगे। निःशुल्क ग्राहक सेवा नंबर पर शिकायत दर्ज करने पर आप अवश्य शिकायत नंबर पूछ कर नोट कर लें, यह नंबर आपकी शिकायत पर कार्यवाही ना होने की स्थिति में आपकी सहायता करेगा। उसी प्रकार, बैंक के कार्यालय में शिकायत दर्ज करने की स्थिति में आप अपने आवेदन की प्राप्ति ले कर रख लें। बैंक अगर कोई भी कार्यवाही नहीं करता, तो आप आरबीआई के बैंकिंग ऑम्ब्ड्स्मैन में बैंक के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज कराएं।
अगर आपने भूलवश कोई ओटीपी, अपने एटीएम कार्ड की जानकारी, या ऑनलाइन बैंकिंग का पासवर्ड किसी अपराधी को बता दिया, तो भी डरें नहीं। जल्द से जल्द जानकारी बैंक से साझा करने से आपके पैसे वापस आने की उम्मीद में बढ़ोतरी होती है। बैंक आपके खाते में से निकले हुये पैसे को बचा सकता है। इसके अलावा, अगर बैंक को जानकारी देने के बाद भी अगर आपके खाते से कोई अनाधिकृत लेन देन होता है, तो इस स्थिति में पूरी ज़िम्मेदारी बैंक की होगी और बैंक को आपके पैसे वापस करने पड़ेंगे।
बैंक को सूचना देने के बाद आप अपने पास मौजूद सारी जरूरी जानकारी संग्रह कर लें जैसे कि खाते से पैसे कट जाने का एसएमएस, या फिर कोई ईमेल, या खाते का विवरण। ध्यान रहे, आप किसी भी परिस्थिति में कोई भी जानकारी अपने फोन से डिलीट बिलकुल भी ना करें। डिलीट करने का परिणाम आपके हितों के विपरीत जा सकता है।
अगर किसी अपराधी ने आपको गुमराह कर के पैसे निकाल भी लिए हैं, या किसी भी तरीके की धोखाधड़ी आपके साथ की है, तो आप हर एक तथ्य के प्रमाण को संग्रह कर लें। उदाहरण के तौर पर, अगर अपराधी ने आपको कॉल करके कहा कि आप अपना अकाउंट बंद करने से बचाने के लिए मोबाइल पर आने वाले ओटीपी को बताएं और किसी तरीके से आपके खाते से पैसे की निकासी कर लेने मे सफल होता है, तो इस मामले में आपको अपराधी का मोबाइल नंबर, फोन आने का समय, प्राप्त किया हुआ ओटीपी, ओटीपी के आने का समय, पैसे की निकासी होने का समय, इत्यादि, सुरक्षित रखना होगा। अगर अपराधी से हुई बात-चीत की कॉल रिकॉर्डिंग आपके पास हो तो वह भी मददगार साबित हो सकती है। बेहतर यह होगा की आप अपने फोन में स्क्रीनशॉट लेकर यह सारे सबूत इकट्ठा कर लें। कॉल रिकॉर्डिंग को किसी सीडी या डीवीडी के माध्यम से रख सकते हैं। इसके बाद आप भारत सरकार की सेवा www.cybercrime.gov.in पर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा, आप नजदीकी पुलिस थाने जाकर भी अपनी शिकायत लिखवा सकते हैं। इन दोनों ही तरीकों में आप अपनी शिकायत के साथ इकट्ठे किए हुये सारे प्रमाणों को प्रस्तुत करें।
यद्यपि मेरी सलाह तो यह होगी की बैंक को सूचित करने के तुरंत बाद ही आप किसी अधिवक्ता की सहायता लें। किसी अधिवक्ता की लिखी हुई शिकायत में यह साफ हो जाता है की किन किन क़ानूनों/ प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है जिनकी तफतीश होनी चाहिए और कौन से तथ्य और प्रमाण अहम हैं। ऐसी स्थिति मे पुलिस की ओर से कोई गलती या हेरफेर, या मामले मैं रुचि न दिखने का प्रश्न खत्म हो जाता है। बिलकुल सटीक तरीके से इन उल्लाघनों के बारे में लिखने से एफ़आईआर लिखना भी पुलिस की मजबूरी हो जाती है।
अनेक बार यह प्रश्न उभर कर आता है कि पुलिस कहीं मुझे ही तो कोई नुकसान नहीं पहुंचा देगी? क्या पुलिस मेरी शिकायत दर्ज करेगी? खासतौर पर तब, जब आपके खाते से कोई बड़ी राशि कि निकासी न हुई हो। सबसे पहले अपने दिमाग से यह बात निकाल दें कि पुलिस आपको कोई नुकसान पहुंचाएगी। बिना वजह पुलिस आपको कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकती। अगर पुलिस आपसे किसी भी तरीके का दुर्व्यवहार करती है या आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती, तो फौरन किसी अधिवक्ता की सहायता लें। ऐसी कानूनी प्रक्रियाएं मौजूद हैं जो कि आपको न्याय दिलवाने में मददगार साबित होंगी और जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पे कार्यवाही करेंगी। आपका अधिवक्ता पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से, और उनके भी कार्यवाही ना करने की स्थिति में न्यायिक मैजिस्ट्रेट से यह गुहार लगा सकता है की मामले मैं एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश दिया जाए। सिर्फ इतना ही नहीं, अगर पुलिस सही / नियमित तरीके से मामले की जांच नहीं कर रही है, तो भी मैजिस्ट्रेट यह आदेश पारित कर सकता है की जांच पूरी तरह से उसकी या किसी अन्य मैजिस्ट्रेट की देख रेख में हो। इन सभी बिन्दुओं का ध्यान रखने से आपके पैसों को वापस लाने में सहायता होगी।
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